झरने नाले नदियाँ हमको देती ये प्यारा संदेश मिलकर हमको उस सागर में सागर ही बन जाना है हम सब उसके अंश मात्र हैं जीवन की गति उससे है क्या जल कण उस शक्ति बिना पानी से भाप बना करता है बिना एकता और अनुशासन भाप कहीं बादल बनती है बिना नमी और हरियाली के बादल कहीं बरसता है खड़ा हिमालय देख रहा है इस पावन अविनाशी को कब बरसेगा बिन्दु रूप में या बर्फीle कण-कण में बरसा बादल अचल शिखर पर च्युत होकर नीचे आया भू मंडल से भूतल पर कर्म यज्ञ करने आया तोड दिया मिथ्या भ्रम को निरहंकारी बन नीचे आया वह चेतन है जाग्रत में है तभी धरा पर आया है अचल शिखर धारण करता है इस पावन अविनाशी को इससे अपना तन मन ढकता प्रहरी बन कार्य निभाने को यह पावन जल जीवन उनका जो पर्वत पर रहते हैं कैसा सुन्दर नियम प्रकृति का जीवन जिन्दा रखती है जल अविनाशी शक्ति लिए सागर से पर्वत पर आता है शक्ति निहित है हर जल कण में शक्ति निहित बर्फीले कण में धारण करता पर्वत इनको शंकर बनके जटाओं में एक साथ यदि गिरता भू पर बिना कर्म ही बह जाता दिशाहीन हो जाता थल पर धरा-धरा पर रह जाता छोड रहे शंकर पर्वत बन जल को पावन धारों में बन जाती हैं आगे चलकर अलकनंदा-मंदाकिनी- सहश्रधारा और कावेरी जेल से छूटे कैदी सी प्रीतम से मिलने जाती हैं गिरते पडते ऊँचे नीचे शिलाखंड भी लाती हैं जो भी आए बीच मार्ग में उसको भी ले जाती हैं कल-कल करके ये धाराए आगे आकर मिलती हैं मिलकर सबने सोचलिया है साथ लक्ष्य को पायेंग कर्म यज्ञ को करते-करते सागर को पा जायेंगे यहीं बनीं हैं गंगा मैया यही यमुना और ब्रह्मपुत्रा यही हमारे अंदर भी हैं सत- रज-तम की धारों में सागर से दूर हैं जितनी उतने वेग से चलती हैं कितनों का ये जीवन बनतीं कितनों को पार लगाती हैं कर्म यज्ञ को करते-करते समता में आ जाती हैं देखलिया सागर को जिसने उसकी गति हो गई धीमी है मिलन बिन्दु तक चलते-चलते एसा ही कुछ लगता है सागर में ही समा रहा है सागर से जो निकला है गंगा में नाला भी गिरकर गंगा ही बन जाता है अंतकाल में जाकर के वह सागर को ही पाता है प्यार ही गंगा प्यार ही यमुना प्यार ही बहती कावेरी प्यार-प्यार करते-करते ही प्यारे को पा जाना है यहाँ लिया जो यहीं रहेगा साथ नहीं कुछ जाना है कर्म यज्ञ में भाव मिला दो पूजा ही बन जाना है गीता में ही सत्य निहित है सत्य भाव से पायेंगे गीता धारण करते करते गीता ही बन जायेंगे झरने नाले नदियाँ हमको देतीं ये प्यारा संदेश मिलकर हमको उस सागर में सागर ही बन जाना है
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