विवश हो रहा लिखने आज नारी नहीं गैर तू कोई नारी नहीं और तू कोई तू मेरा प्रतिरूप है तू मेरा ही रूप है तूने कहाँ जन्म पाया था मैंने कहें जन्म पाया था विधि ने साधना पूरी करने को हम दौनौं को साथ मिलाया पति पत्नी का जामा पहने हम दो मानव दिखते हैं दोनो में बस अंतर इतना एक नर है एक नारी है पूर्ण नहीं नर बिना नारि के पूर्ण नहीं नारी बिन नर के नर नारी मिलकल के ही यह संसार बसाते हैं दोनो आए जीवन पथ पर कर्म यज्ञ करने को ना मेरा कोई रूप है ना तेरा कोई रूप है दोनो में ही सत्य निहित है यही सत्य है बाकी सब झूठ है
← Back to Home