हे मेरे मन तू अदृश्य है पता नहीं इस शरीर में कहाँ विद्यमान है कहते हैं कि तू अति सूक्ष्म है संसार की उत्पत्ति-स्थिति और प्रलय का कारण है तेरी महिमा अपरंपार है समुद्र से तेरी तुलना करूँ तो भी शायद कम है तू समुद्र से भी विशाल है विचार रूपी जल तुझमें विद्यमान है लहरों रूपी विचार धाराए हैं लहरें दौनों प्रकार की होती हैं एक इंसान की जान ले सकती हैं दूसरी डूबते को पार लगा सकतीं हैं कभी-कभी अमुक परिस्थिति में समुद्री तूफान की तरह तेरे अन्दर भी तूफान उठता है जिसके परिणाम शुभ या अशुभ हो सकते हैं जैसी विचार धारा होगी वैसा ही परिणाम होगा संयमित व शान्त रहने पर तूफान धीरे-धीरे शान्त हो जाता है अतः मेरे मन तू मुझे विश्वास दिला कि अब तेरे अन्दर अच्छी विचार धाराऐं ही रहेंगी जिससे मेरा मेरे समाज का मेरे देश का भला हो सके तू रचनात्मक विचार धाराओं को इस तरह संजोये रख जिस तरह पूर्णिमा के चाँद कीचाँदनी व शीतलता में शांत समुद्र में लहरें समाई रहती हैं तू जागरूप रह वक्त पर बता दे कि कौन सी विचार धारा जरूरी है इन्द्रियों पर काबू रख संयम रख जिससे मन वचन व कर्म में समानता रहे मेरी कार्य कुशलता कार्य क्षमता निरंतर बढे नई जानकारी को ग्रहण कर जिससे मेरी योग्यता बढे बोली व शैली पर अंकुश रख जिससे मीठी वाणी ही निकले अपने कर्तव्य के बारे में सजग रह किसी को शिकायत का मौका मत दे या खुद सोचकर अकर्तव्य के लिए विचलित न होना पड़े काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद- झूठ-छल-कपट से दूर रख अहँकार भूलकर भी मत कर याद रख परमात्मा का रूप सबसे विशाल है तुझे मानव शरीर परमात्मा ने तेरे कल्याण को दिया है तू अपने रास्ते से विचलित मत हो मत अपना रास्ता बदल विचारों में द्रढता रख एकता की भावना रख बड़ों का (पद व आयु में) आदर कर नम्र व सत्य व्यवहार कर अन्याय को मत सह भूलों को सही राह दिखा बदले की भावना या स्वार्थ भावना मत रख अपनी पवित्रता बनाऐ रख हे मेरे मन मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल जीवन का उद्देश्य मनुष्य धर्म का पालन सर्वोपरि है।
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